केदारनाथ सिंह प्रतिष्ठित सम्मान ज्ञानपीठ पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक हैं.
उन्हें 2014 में यह सम्मान मिला था. 2) 1934 में बलिया के गांव चकिया (उत्तर प्रदेश) में जन्मसांस की तकलीफ के कारण उन्हें 13 मार्च को एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में भर्ती किया गया था। ‘अंत महज एक मुहावरा है’
और ‘दिन के इस सुनसान पहर में रुक सी गई प्रगति जीवन की’ के रचयिता को ‘यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है’
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए किया.
आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर और लेखक केदारनाथ सिंह का सोमवार रात 9:10 बजे एम्स में निधन हो गया। यूपी के बलिया जिले के चकिया गांव में 1934 को जन्मे सिंह को 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।